कम्प्यूटर की पीढ़ियाँ Generations of Computer प्रथम इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर के बाद वर्तमान समय के कम्प्यूटर तक जो भी सुधार हुए, उनको चार भागों में बाँटा गया है। जिसे कम्प्यूटर पीढ़ी (Computer Generation) कहा जाता है। कम्प्यूटर की पीढ़ी का वर्गीकरण कम्प्यूटर में लगे मुख्य पुर्जों, जिन्होंने कम्प्यूटर का स्वरूप ही बदल दिया, को आधार मानकर किया गया है। कम्प्यूटर में प्रयोग किए हुए मुख्य इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों के आधार पर कम्प्यूटर के विकास के चरणों को निम्नांकित पाँच पीढ़ियों में बाँटा गया है-
पहली पीढ़ी के कम्प्यूटर First Generation Computers
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में वैक्यूम ट्यूबों (vacuum tubes) का प्रयोग किया जाता था। इस पीढ़ी का समय मोटे तौर पर सन् 1948 से 1955 तक माना जाता है। उस समय वैक्यूम ट्यूब ही एकमात्र इलेक्ट्रॉनिक पुर्जा था जो उपलब्ध होता था। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर आकार में बहुत बड़े होते थे और इतनी गर्मी पैदा करते थे कि एयर-कण्डीशनिंग अनिवार्य होती थी। ये गति में धीमे होते थे और इनका मूल्य भी तुलनात्मक दृष्टि से बहुत अधिक होता था। इनमें कोई ऑपरेटिंग सिस्टम न होने के कारण आवश्यकता पड़ने पर विभिन्न उपकरणों को जोड़ने या हटाने तथा स्विच आदि दबाने का कार्य उपयोगकर्ता को स्वयं ही करना पड़ता था, जो बहुत ही असुविधाजनक होता था। इस पीढ़ी के कुछ कम्प्यूटरों के नाम इस प्रकार हैं- एनिएक, एडसैक, एडवैक, यूनीवैक-1, यूनीवैक-2, आई०बी०एम०-701, आई०बी०एम०-650, मार्क-2, मार्क-3, बरोज-2202.
दूसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर Second Generation Computers
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का समय सन् 1955 से 1965 तक माना जाता है। इससे पहले ही अमेरिका की बेल लैबोरेटरी (Bell labs) ने ट्रांजिस्टर (transistor) की खोज कर ली थी, जो वैक्यूम ट्यूब की तुलना में हर तरह से बेहतर होता है। इसलिए कम्प्यूटरों में वैक्यूम ट्यूबों का उपयोग समाप्त हो गया और ट्रांजिस्टरों का उपयोग होने लगा। इससे कम्प्यूटरों की दूसरी पीढ़ी अस्तित्व में आयी। इस पीढ़ी के कम्प्यूटर आकार में छोटे, गति में तेज तथा अधिक विश्वसनीय होते थे और उनकी लागत भी कम होती थी। ये बहुत कम गर्मी उत्पन्न करते थे, लेकिन एयर कण्डीशनिंग की आवश्यकता फिर भी रहती थी। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों
में इनपुट (input) तथा आउटपुट (output) के उपकरण बहुत सुविधाजनक होते थे, जिससे डाटा स्टोर करना तथा परिणाम प्राप्त करना सरल था। इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों में आई०बी०एम०-1401 प्रमुख है, जो बहुत लोकप्रिय था और बड़े पैमाने पर उत्पादित किया गया था। इस पीढ़ी के अन्य कम्प्यूटर थे- आई०बी०एम०-1602, आई०बी०एम०-7094, सी०डी०एस०-3600, आर०सी०ए०-501, यूनीवैक-1107 आदि।
इन कम्प्यूटरों का उपयोग मुख्य रूप से वैज्ञानिक कार्यों में किया जाता था, लेकिन बाद में व्यापारिक कार्यों में भी किया जाने लगा।
तीसरी पीढ़ी के कम्प्यूटर Third Generation Computers
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का समय सन् 1965 से 1975 तक माना जाता है। इनमें एकीकृत परिपथों
(integrated circuits) या चिपों (chips) का उपयोग किया जाता था, जो आकार में बहुत छोटे होते थे और एक चिप पर सैकड़ों ट्रांजिस्टरों को एकीकृत किया जा सकता था। इनसे बने कम्प्यूटर आकार में छोटे, गति में बहुत तेज तथा विश्वसनीयता में बहुत अधिक होते थे। इनके कार्य करने की गति इतनी तेज थी कि ये 1 सेकण्ड के समय में लाखों बार जोड़ने की क्रियाएँ कर सकते थे।
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों के साथ ही डाटा को भण्डारित करने वाले बाहरी साधनों; जैसे- डिस्क, टेप आदि का भी विकास हुआ, जिससे कम्प्यूटर की मुख्य मेमोरी पर पड़ने वाला दबाव कम हो गया और उनके लिए प्रोग्राम लिखना भी सरल हो गया। इसके कारण एक ही कम्प्यूटर पर एक साथ अनेक प्रोग्राम चलाना (multiprogramming) तथा एक प्रोग्राम को कई प्रोसेसरों पर एक साथ चलाना (multiprocessing) भी सम्भव हो गया।
इस पीढ़ी के कम्प्यूटर आकार में छोटे होने के साथ-साथ सस्ते भी थे, जिसके कारण छोटी कम्पनियों तथा सरकारी कार्यालयों में भी कम्प्यूटर लगाना सम्भव हुआ। इस पीढ़ी के मुख्य कम्प्यूटर थे- आई०बी०एम०-360 तथा 370 श्रृंखलाएँ, आई०सी०एल०-1900 तथा 2900 श्रृंखलाएँ, बरोज-5700, 6700 तथा 7700 श्रृंखलाएँ, सी०डी०सी०-3000, 6000 तथा7000 श्रृंखलाएँ, यूनीवैक-9000 श्रृंखला, हनीवेल-6000 तथा 200 श्रृंखलाएँ, पी०डी०पी०-11/45 आदि।
चौथी पीढ़ी के कम्प्यूटर Fourth Generation Computers
इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का समय सन् 1975 से 2005 तंक माना जाता है, हालांकि आजकल भी इनका भरपूर उपयोग किया जा रहा है। इनमें केवल एक सिलिकॉन चिप पर कम्प्यूटर के सभी एकीकृत परिपथों को लगाया जाता है, जिसे माइक्रोप्रोसेसर (microprocessor) कहा जाता है। वास्तव में ये अति वृहद् एकीकृत परिपथ (Very Large Scale Integrated Circuits-VLSI) हैं, जिनमें एक माइक्रो चिप पर हजारों-लाखों ट्रांजिस्टरों को जमा दिया जाता है। इन चिपों का उपयोग करने वाले कम्प्यूटरों को माइक्रोकम्प्यूटर (microcomputer) कहा जाता है।
ये, कम्प्यूटर आकार में बहुत छोटे होते हैं, जो एक मेज पर भी आ जाते हैं। इनमें बिजली की खपत बहुत कम होती है तथा ये सामान्य तापक्रम पर भी कार्य करने में समर्थ होते हैं। इनका मूल्य भी इतना कम होता है कि
छोटे दुकानदार भी उन्हें खरीद सकते हैं। छोटे-छोटे कम्प्यूटरों की एक ऐसी श्रेणी भी अस्तित्व में आ गयी है, जिन्हें पर्सनल कम्प्यूटर (personal computer) या पीसी (PC) कहा जाता है। इन पर कार्य करना बहुत ही सरल और बहुत सस्ता है। इनके अलावा पर्सनल कम्प्यूटरों की एक ऐसी श्रृंखला भी बन गयी है, जो गति और क्षमता में बड़े-बड़े कम्प्यूटरों से टक्कर लेते हैं, इन्हें पेण्टियम (Pentium) कहा जाता है, क्योकि ये इण्टेल (Intel) नामक कम्पनी द्वारा बनाये गये माइक्रोप्रोसेसरों को पेण्टियम नामक श्रृंखला पर आधारित हैं। वर्तमान में इनका उपयोग और उत्पादन भारी संख्या में किया जा रहा है।
माइक्रोकम्प्यूटर बनाने वाली कम्पनियों की एक बहुत बड़ी संख्या है, जो विभिन्न श्रेणियों के पर्सनल कम्प्यूटर; जैसे- डेस्कटॉप, लैपटॉप व टैबलेट आदि बनाती हैं, ऐसी कुछ कम्पनियों के नाम हैं- आई०बी०एम०, एच०सी०एल०, विप्रो, जेनिथ, एच०पी० आदि। वर्तमान में प्रारम्भिक श्रेणियों के पीसी का उपयोग प्रायः समाप्त हो गया है और केवल पेण्टियम श्रेणी के कम्प्यूटर प्रचलन में हैं, जिनकी चार श्रेणियाँ पेण्टियम-1 से लेकर पेण्टियम-4 तक व पेण्टियम ड्यूल-कोर आदि अस्तित्व में आ चुकी हैं।
पाँचवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर Fifth Generation Computers
सन् 2005 के बाद के समय से ऐसे कम्प्यूटरों के निर्माण का प्रयास चल रहा है, जिनमें कम्प्यूटिंग की ऊँची क्षमताओं के साथ-साथ तर्क (logic) करने, निर्णय लेने (decision making) तथा सोचने (thinking) की भी सामर्थ्य हो। इनको पाँचवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर कहा जा रहा है। अभी तक के सभी कम्प्यूटरों का मुख्य जोर डाटा प्रोसेसिंग (data processing) पर रहा है, जबकि इस पीढ़ी के कम्प्यूटरों का जोर ज्ञान प्रोसेसिंग (knowledge processing) पर होगा। वैज्ञानिको का दावा है कि ये कम्प्यूटर बहुत हद तक मानव मस्तिष्क जैसे होगे।
हालांकि अभी तक ऐसे कम्प्यूटर बनाने में सफलता नहीं मिली है। परन्तु कुछ ऐसे कम्प्यूटर अस्तित्व में आ गये हैं, जिनमें चौथी पीढ़ी के कम्प्यूटरों की तुलना में अति उच्च क्षमताएँ हैं। इन्हें सुपर कम्प्यूटर (Super Computer) कहा जाता है। ये एक साथ सैकड़ों कम्प्यूटरों के बराबर कार्य अकेले ही कर लेते हैं। भारत में भी ‘परम’ और ‘अनुराग’ नामक स्वदेशी सुपर
कम्प्यूटर बनाये गये हैं, जिनका विदेशों को भी निर्यात किया गया है।