ऊर्जा सरंक्षण (Energy Conservation)
आर्थिक विकास की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक ऊर्जा है। समाज के प्रत्येक क्षेत्र, जैसे-कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार या घर, सभी जगह ऊर्जा की आवश्यकता होती है। पिछले वर्षों में जैसे-जैसे देश की प्रगति हुई है, इन क्षेत्रों में ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ी है। ऊर्जा की बढ़ती हुई खपत की जीवाश्म ईंधनों, जैसे-कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस पर निर्भरता बढ़ती है जिससे बिजली की आपूर्ति होती है।
आज पर्यावरण के प्रदूषण और स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण इन जीवाश्म ईंधनों की अपेक्षा स्वच्छ ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास तथा उपयोगिता की जरूरत बढ़ी है। जीवाश्म ईंधनों की बढ़ती कीमतों और भविष्य में इनकी कमी के गंभीर संकट से ऊर्जा विकास के एक स्थायी मार्ग के सृजन की आवश्यकता महसूस की गई है। इसके लिए दो सवर्वोत्तम मार्ग हैं-पहला, ऊर्जा संरक्षण को प्रोत्साहन देना; और दूसरा, पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करना। देश में ऊर्जा की माँग और आपूर्ति के बीच अंतराल को कम करने की सबसे अधिक लागत प्रभावी विधि ऊर्जा दक्षता को प्रोत्साहन देना तथा इसका संरक्षण करना है। ऊर्जा संरक्षण, कम खपत के जरिए उपयोग की जा रही ऊर्जा को कम खर्च करने अथवा प्रकाश बल्ब या वातानुकूलन में विद्युत दक्ष युक्तियों का उपयोग करने के माध्यम से किया जा सकता है। यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 25,000 मेगावाट क्षमता विद्युत क्षेत्र में केवल ऊर्जा दक्षता के माध्यम से उत्पन्न की जा सकती है,
जिसमें अधिकतम क्षमता कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में देखी जा सकती है।